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डीके शिवकुमार–सिद्धारमैया मनमुटाव फिर सतह पर, क्या कर्नाटक कांग्रेस में बढ़ेगी टूट की रफ्तार?

बेंगलुरु 
कर्नाटक के विपक्षी दलों और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना ​​है कि राज्य सरकार के नेतृत्व को लेकर कई दिनों तक चली ‘खींचतान’ के बाद मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और उपमुख्यमंत्री डी के शिवकुमार के बीच ‘समझौता’ अस्थायी है। उन्होंने कहा, यह तूफान से पहले की शांति और एक ‘रणनीतिक समायोजन’ है। कांग्रेस ने इस मुद्दे पर भ्रम पैदा करने के लिए विपक्ष और मीडिया को जिम्मेदार ठहराया।
 
एक महीने से चल रहे सत्ता संघर्ष के बाद दोनों नेताओं ने शनिवार को सिद्धरमैया के आवास पर नाश्ते पर मुलाकात की और मतभेदों के दूर होने की घोषणा की। इसके अलावा, दोनों नेताओं ने बाद में संयुक्त रूप से संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया, एकता का प्रदर्शन किया और घोषणा की कि वे पार्टी आलाकमान का कहना मानेंगे। इस तरह, उन्होंने मुख्यमंत्री परिवर्तन पर विवाद को खत्म करने की कोशिश की। कथित तौर पर 2023 में सरकार बनाते समय सहमति बनी थी कि ढाई साल के कार्यकाल के बाद शिवकुमार मुख्यमंत्री पद पर आसीन होंगे और ढाई साल नवंबर 2025 में पूरे हुए।

अस्थायी समझौते का दावा
राज्य की मुख्य विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)के नेता प्रकाश शेषराघवचार के मुताबिक जिस बैठक के परिणामस्वरूप संघर्ष विराम हुआ, वह ‘‘हर असहमति को सुलझाने के बारे में कम और कामकाजी सद्भाव को बहाल करने के बारे में अधिक थी’’। उन्होंने दावा किया, ‘‘यह केवल एक अस्थायी समझौता है। एक बार जब कोई राजनीति में अति महत्वाकांक्षी हो जाता है, तो आप उसे कुछ समय के लिए शांत करा सकते हैं, लेकिन यह फिर से उभरेगा।’’ शेषराघवचार के मुताबिक, शिवकुमार ने अपने समर्थकों को उनके पक्ष में आवाज उठाने के लिए उकसाया था।

शेषराघवचार ने कहा, ‘‘शिवकुमार के समर्थक विधायक दिल्ली गए और कुछ संत भी उनके समर्थन में आए। अब उप मुख्यमंत्री पीछे नहीं हट सकते। इससे उनकी प्रतिष्ठा को धक्का लगेगा। अब उनके सामने करो या मरो की स्थिति है, जिसे उन्होंने खुद न्योता दिया है। हो सकता है कि मीडिया या किसी और माध्यम से इसे नए सिरे से शुरू करने के लिए वह कुछ समय तक चुप रहें।’’

भाजपा बोली, कांग्रेस दो गुटों में बंट गई
भाजपा नेता ने कहा कि कांग्रेस अब दो गुटों में बंट चुकी है और इसकी लड़ाई राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस जैसी हो गई है, जहां गुटबाजी ने चुनाव में इसकी संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया है। अन्य विपक्षी पार्टी जनता दल-सेक्युलर (जद-एस) के विधान पार्षद (एमएलसी) टी ए शरवण ने ‘पीटीआई-भाषा’से कहा कि इस विवाद ने दोनों नेताओं और उनकी पार्टी को जनता के सामने पहले ही बेनकाब कर दिया है, लेकिन अब वे अपने झगड़े को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं।

उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘राज्य के लोग एकता के इस प्रदर्शन को स्वीकार नहीं करेंगे। सरकार लोगों से किए गए वादों को पूरा करने में असमर्थ है और विकास कार्यों को करने में विफल रही है। इसलिए, मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री ने नाटक का मंचन किया।’’ वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रामकृष्ण उपाध्याय ने कहा कि कांग्रेस आलाकमान ने सिर्फ सुलह-समझौते का काम किया है, जो ज्यादा दिन तक नहीं टिकेगा। उन्होंने कहा, ‘‘कल की नाश्ते पर बैठक आलाकमान के आदेश पर हुई थी, जिसे उन्होंने (मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ने) स्वेच्छा से नहीं किया था। उनके बीच पहले से ही मतभेद थे। नाश्ते पर बैठक और संयुक्त संवाददाता सम्मेलन आलाकमान द्वारा पूरी तरह से सुनियोजित कदम था।’’

उपाध्याय ने कहा, ‘‘सिद्धरमैया और शिवकुमार ने ठीक वही किया, जो उन्हें बताया गया था – कि वे साथ हैं, उनमें एकता है, उनके बीच कोई मतभेद नहीं हैं और वे कांग्रेस आलाकमान की बातों पर अड़े रहेंगे। लेकिन इतने महीनों और पिछले एक हफ्ते से चल रही तीखी खींचतान के बाद, क्या समाधान की कोई संभावना है? नतीजा शून्य है।’’ उनके अनुसार, नाश्ते की बैठक में कुछ भी हासिल नहीं हुआ, क्योंकि इसमें स्पष्टता का अभाव था कि क्या आलाकमान ने शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाने के संबंध में कोई वादा किया था। कांग्रेस प्रवक्ता एम. लक्ष्मण ने जोर देकर कहा कि दोनों नेताओं के बीच किसी भी समय कोई मतभेद नहीं था।

लक्ष्मण ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मतभेदों का विमर्श भाजपा और जनता दल (एस) और मीडिया के एक वर्ग का नतीजा है। अगर कोई समझौता हुआ था, तो वह कांग्रेस का अंदरूनी मामला था और फैसले पार्टी को लेने थे। कर्नाटक ने मीडिया का ध्यान विशेष रूप से क्यों आकर्षित किया? ऐसा इसलिए क्योंकि कर्नाटक में एक गैर-भाजपा पार्टी का शासन है। इरादा सरकार को अस्थिर करके कांग्रेस मुक्त भारत की ओर बढ़ना था।’’ ‘कांग्रेस मुक्त भारत’, भाजपा द्वारा अपने प्रतिद्वंदी के खिलाफ बार-बार दोहराया जाने वाला एक नारा है।