पटना
बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने सवर्ण आयोग को मजबूत कर दिया है। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले नीतीश कुमार ने आयोग को नए अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और मेंबर दिए हैं। यही नहीं आयोग ने बुधवार को ही एक मीटिंग भी की है, जिसमें सवर्ण समाज में आने वाली जातियों के हालात पर चिंता व्यक्त की गई। नीतीश कुमार सरकार को लगता है कि अति-पिछड़ा, दलित और पिछड़ा की गोलबंदी के बीच कहीं सवर्ण समुदाय न छिटक जाए। ऐसे में उसे साधने के लिए यह उपक्रम किया गया है। भाजपा के समर्थक कहे जाने वाले सवर्ण समुदाय की राजपूत और भूमिहार जैसी जातियां अकसर छिटकती रही हैं। हालांकि ब्राह्मण और कायस्थ भाजपा के पक्ष में एकजुट नजर आए हैं।
ऐसी स्थिति में सवर्णों की पूरी गोलबंदी एनडीए के फेवर में हो, इसके लिए प्रयास शुरू हो गए हैं। इसी की कड़ी सवर्ण आयोग है। अब यह आयोग आने वाले दिनों में कुछ सिफारिशें भी कर सकता है। इन सिफारिशों में एक यह भी होगा कि गरीब सवर्ण परिवारों के बच्चों को सरकारी नौकरियों में आयु सीमा में छूट दी जाए। इसके अलावा यूपीएससी, पीसीएस और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए फ्री कोचिंग की सिफारिश हो सकती है। गरीब सवर्णों के बच्चों को हॉस्टल की सुविधान देने की सिफारिश भी आयोग की तरफ से की जा सकती है।
सवर्ण आयोग का कहना है कि 2011 में भले ही इसका गठन हुआ था, लेकिन अब यह ज्यादा कारगर होगा। सूत्रों के मुताबिक आयोग के सदस्यों का कहना है कि अब हमारे पास जातीय जनगणना का डेटा है। हम यह जानते हैं कि कितने सवर्ण परिवार गरीब हैं और उसके कारण क्या हैं। उन्हें क्या लाभ देकर आगे बढ़ाया जा सकता है। दरअसल ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार और कायस्थ मिलकर बिहार में करीब 15 फीसदी हैं। भले ही यह बड़ा आंकड़ा नहीं है, लेकिन यदि एकमुश्त वोट किसी दल को मिलता है तो नतीजे पलटने का दम रखते हैं। खासतौर पर मिथिलांचल में ब्राह्मणों की अच्छी तादाद है। इसके अलावा कई जिलों में भूमिहार मजबूत हैं।
सवर्ण आयोग ने बनाईं तीन समिति, किन मामलों में करेंगी सिफारिश
फिलहाल सवर्ण आयोग ने अलग-अलग मसलों के लिए तीन उप-समितियों का गठन कर दिया है। इन समितियों की सिफारिश के आधार पर ही आगे फैसला होगा। माना जा रहा है कि चुनाव से पहले सवर्ण आयोग की कुछ सिफारिशें सरकार को दी जा सकती है। यही नहीं चुनाव में उतरने से पहले कुछ सिफारिशों को लागू करने का ऐलान भी नीतीश कुमार की सरकार कर सकती है।