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गठिया के 40 प्रतिशत मरीजों को दवा के साथ साथ परिवार के सपोर्ट की भी जरूरत


* भोपाल रह्युमेटोलॉजी एसोसिएशन द्वारा आयोजित सेमिनार में डॉक्टर्स ने गठिया रोग से जुड़ी जानकारियों को किया साझा

आम सभा, भोपाल।

रह्युमेटोलॉजी एसोसिएशन, भोपाल द्वारा अर्थराइटिस (गठिया रोग) जागरूकता माह के उपलक्ष्य में हिंदी भवन. साईंस सेंटर रोड पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस जागरूकता कार्यक्रम में विशेषज्ञ डाक्टरों की टीम द्वारा गठिया के प्रकार, नवीनतम उपचार, आहार, व्यायाम और बचाव के बारे में जानकारी दी गई। समारोह में भोपाल फ्रेक्चर अस्पताल के कंसलटेंट रह्युमेटोलॉजिस्ट डॉ. राहुल साहू ने कहा कि आमतौर पर लोग गठिया को सिर्फ जोड़ों के दर्द और सूजन से जोड़कर देखते हैं जबकि एक ऑटो इम्यून डिसऑर्डर है।
यानि इसमें हमारे अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली हमारे ही शरीर के सेल्स के खिलाफ काम करने लगती है। आमतौर पर किसी भी बाहरी संक्रमण से शरीर की रक्षा करने के लिए जब हमारा इम्युनिटी सिस्टम काम करना शुरू करता है तो वह अधिक सक्रिय होकर अपने ही शरीर की कोशिकाओं को नष्ट करने लगता है, इसी स्थिति को गठिया कहते हैं। उन्होंने कहा कि गठिया के 40 प्रतिशत मरीज अवसाद के शिकार हो जाते हैं। ऐसे समय में दवाओं से ज्यादा जरूरी है परिवार का साथ और समाज का उनकी तरफ सकारात्मक नजरिया, जिसके कारण मरीज में अपनी बीमारी को ठीक करने की इच्छा शक्ति पैदा होती है। भारतीयों के शरीर में विटामिन डी को सोखने वाले जीन रिसेप्टर की कमी होती हैं इसलिए सभी भारतीयों में विटामिन डी कम ही पाया जाता है। इसके स्तर को ठीक बनाए रखने के लिए सुबह और शाम की धूप लेने के साथ ही इसके सप्लीमेंट्स भी लें, यह आपके इम्यून सिस्टम के लिए जरुरी हैं।

*इस बीमारी की कोई आयु सीमा नहीं
बंसल अस्पताल के कंसलटेंट रह्युमेटोलॉजिस्ट डॉ. अशोक गुप्ता ने कहा कि यह 100 से अधिक प्रकार का होता है। यह सिर्फ शरीर के जोड़ों पर ही दुष्प्रभाव नहीं डालता बल्कि बाकि अंगों को भी क्षति पहुंचाता है इसलिए जरुरी है कि गठिया के लक्षण जैसे जोड़ों में दर्द, सूजन और अकड़न दिखते ही तुरंत चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए। इस बीमारी कि अब कोई उम्र नहीं रह गई है। हमने 2 साल के बच्चों में भी गठिया की बीमारी देखी है। जंक फूड और कसरत की कमी के कारण लोगों का वजन बढ़ता है और उन्हें ये बीमारिया घेर लेती हैं। लोग डॉक्टर के कहने के बाद अपना वजन कम करते हैं जबकि ये पहले ही कर लेना चाहिए।
*गठिया लाइलाज नहीं है*
इस अवसर पर हमीदिया अस्पताल की मेडिसिन विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर और कंसलटेंट रह्युमेटोलॉजिस्ट डॉ. प्रेक्षा द्विवेदी ने कहा कि गठिया के बारे में जागरूकता का अभाव है इसलिए अक्सर लोग इलाज के लिए किसी विशेषज्ञ के पास नहीं जाते हैं। जबकि विशेषज्ञ की सलाह पर नियमित रूप से दवाई लेने और डॉक्टर की सलाह मानने पर गठिया के मरीज भी दर्द से राहत पाकर सामान्य जीवन जी सकते हैं।
*बायोलॉजिकल ट्रीटमेंट बेहद कारगर*
इस अवसर पर डॉ. अपूर्व खरे ने कहा कि गठिया का इलाज अब पहले से बेहतर हो गया है। पहले जहाँ मरीज को सिर्फ दर्द निवारक दवाएं दी जाती थी वही अब बायोलॉजिकल ट्रीटमेंट ने इस क्षेत्र में क्रांति ला दी है। ये बेहद कारगर और असरदार है। हालांकि जानकारी के अभाव और विशेषज्ञों की कमी के कारण आज भी बड़ी संख्या में मरीजों को सही इलाज नहीं मिल पाता है।
*समय पर इलाज न मिलने पर आ जाती है विकृति*
एम्स भोपाल के मेडिसिन विभाग एसोसिएट प्रोफेसर और कंसलटेंट रह्युमेटोलॉजिस्ट डॉ. वैभव इंगले ने कहा कि समय के साथ लोगों में जागरूकता जरूर आई हैं पर आज भी लोग जोड़ो के दर्द में पहले घरेलू इलाज करते हैं फिर किसी पैथी की और जाते हैं इसके बाद भी फायदा ना होने पर घर के पास के फिजिशियन या दवाई की दुकान से दवाएं लेकर अपनी बीमारी बड़ा लेते हैं। जब शरीर में विकृति आ जाती है तब मरीज हमारे पास आते हैं, जिससे हमारी परेशानी बढ़ जाती हैं। लोगों को समय रहते जोड़ो के दर्द की गंभीरता को समझते हुए हमारे पास आना चाहिए। इसका परमानेंट इलाज नहीं होता हैं पर लम्बे इलाज के बाद लोगों को काफी राहत मिल जाती हैं। रह्यूमेटोलॉजी के मरीज किस तरह की तकलीफ को झेल रहे हैं इसे समझना बहुत जरूरी है। वे इंडियन टॉयलेट इस्तेमाल नहीं कर सकते, बाल नहीं बना सकते, कपड़े पहनने में तकलीफ होती है, इन कारणों की वजह से शादियों में तकरार आती है, तलाक होते हैं। इस बीमारी को मेडिकल के साथ सोशली भी समझना जरूरी है।
*भ्रांतियों से दूर रहें, एक्सपर्ट की सलाह लें*
मिलिट्री हॉस्पिटल, भोपाल के कमांडेंट एवं डायरेक्टर और कंसलटेंट रह्युमेटोलॉजिस्ट ब्रिगेडियर डॉ. विवेक वासदेव ने कहा कि कई बार लोगों को इस बीमारी के बारे में गलत जानकारियां भी दे दी जाती है जैसे गठिया के बारे में एक आम भ्रम है कि उन्हें खट्टा नहीं खाना चाहिए जबकि गाउट गठिया को छोड़कर अन्य किसी भी प्रकार के गठिया में परहेज करने की जरूरत नहीं होती है। सिर्फ गाउट गठिया में शराब व अन्य तरह के नशों के साथ ही सी फ़ूड खाने से मना किया जाता है। गठिया के बारे में एक भ्रम यह भी है कि एक बार यह बीमारी हो गई तो दवा खाने पर भी विकलांगता तय है जबकि विशेषज्ञों की सलाह और नियमित दवाई लेने पर गठिया के साथ भी इंसान सामान्य जीवन जी सकता है।
*लाइफस्टाइल में सुधार से मिलता है लाभ*
सेज-अपोलो अस्पताल के कंसलटेंट रह्युमेटोलॉजिस्ट डॉ अरुण तिवारी ने कहा कि जोड़ों में दर्द और सूजन महसूस होने पर तुरंत विशेषज्ञों से परामर्श करें। उन्होंने बताया कि गठिया के कारण होने वाले जोड़ों के दर्द को लाइफस्टाइल में परिवर्तन कर और कसरत के जरिए बेहतर किया जा सकता हैं। रुमयाटिक ऑर्थोरियटिस एक प्रतिशत लोगों को होता हैं, इसकी पहचान है कि मुठ्ठी बांधने में तकलीफ होती है। 7 दिन की दवा के बाद भी राहत ना हो तो विशेषज्ञों की सलाह लें। आज इसकी चमत्कारिक इलाज मौजूद है। यह समस्या महिलाओं में ज्यादा पाई जाती है। इसी तरह स्पोटलाइसिस जिसमें पीठ का दर्द होता हैं यह समस्या पुरुषों में अधिक होती है।
*खानपान और जीवनशैली में यह परिवर्तन देंगे गठिया में राहत*
* दूध, दही, संतरा, नींबू और मौसम्बी से मिलने वाले विटामिन गठिया के दर्द को कम करते हैं।
* टमाटर और बैंगन से मिलने वाला आयरन और विटामिन डी गठिया में जरूरी है।
* राजमा और सोयाबीन जैसा प्रोटीन का अच्छा स्त्रोत गठिया के मरीजों के लिए दूसरा कोई नहीं है।
* बिना तड़के और क्रीम वाली दालें गठिया रोगियों के लिए पोषण का अच्छा स्त्रोत है।
* सूखे मेवे लेना अच्छा है बस इनकी मात्रा कम होनी चाहिए।
* हल्दी और लहसुन युक्त खाद्य पदार्थ गठिया के दर्द को कम करते हैं।
* लाल, पीली और हरी सब्जियां जरूर खाएं।
* मैदे के बजाए होल ग्रेन आटे का इस्तेमाल करें।
* नॉन वेजीटेरियन के लिए मछली अच्छी डाइट है।
* रोज गुनगुने पानी से नहाए, 40 मिनिट कसरत करें, 8 घंटे की नींद लें और अपने किसी शौक के जरिए खुद को रिफ्रेश और रिलेक्स करते रहिए। यह गठिया से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका है।
*यह लक्षण दिखाई देते ही तुरंत चिकित्सक से करें संपर्क*
* जोड़ों में दर्द और सूजन
* जकड़न
* जोड़ों को घुमाने में कठिनाई
* प्रभावित स्थान पर लालिमा और गर्माहट
* कमजोरी
* थकावट
* सुबह उठने पर आधे घंटे तक अकड़न
* हड्डी में बुखार रहना
* जोड़ों में टेढ़ापन आना
गठिया से जुड़ी भ्रांतियां
* यह बुजुर्गों को होने वाली बीमारी है।
* इसका कोई इलाज नहीं है।

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